ग्रंथपरिचय योगवासिष्ठ महारामायणम् मुमुक्षु प्रकरण सर्ग १३-१४ सारांश दिवस ९

ग्रंथपरिचय योगवासिष्ठ महारामायणम् मुमुक्षु प्रकरण सर्ग १३-१४ सारांश दिवस ९

 


ग्रंथपरिचय योगवासिष्ठ महारामायणम् मुमुक्षु प्रकरण सर्ग १३-१४ सारांश दिवस ९ 

१) वसिष्ठ : जैसे चन्द्रमा के मण्डल में ताप नहीं होता वैसे ही आत्मज्ञान् की प्राप्ति होने से सब दुःख नष्ट हो जाते हैं ।

२) वसिष्ठ : जब तक अकृत्रिम आनन्द न मिले तब तक अभ्यास करे 

३) वसिष्ठ : संसार के क्षणमात्र के भोगों को त्याग करो । क्योंकि विषय के परिणाम में अनन्त दुःख हैं 

४) वसिष्ठ : जिसने सन्तों और शास्त्रों के विचार द्वारा दृश्यको अदृश्य जाना है वह निर्भय हुआ है 

५) वसिष्ठ :  जिस पुरुष ने परमार्थ मार्ग को त्याग दिया है और संसार के खान पान आदि भोगों में मग्न हुआ है उसको तुम मेंढक जानों, जो कीच में पड़ा शब्द करता है 

६) वसिष्ठ :  जो संसार के पदार्थों में सुख मानते हैं वे सुख बिजली की चमक से हैं जो होके मिट जाते हैं--स्थिर नहीं रहते । संसार का दुःख आगमापायी है ।

७) वसिष्ठ : जिस पुरुष ने सन्त की संगति और सत्‌शास्त्र के विचार द्वारा आत्मपद को पाया है सो पुरुष केवल कैवल्यभाव को प्राप्त हुआ है अर्थात् शुद्ध चैतन्य को प्राप्त हुआ है और संसार भ्रम उसका निवृत्त हो गया है 

८) वसिष्ठ : जीव का कल्याण बान्धव, धन, प्रजा, तीर्थ देव द्वारा और ऐश्वर्य से नहीं होता, केवल एक मन के जीतने से कल्याण होता है 

९) वसिष्ठ : आत्मज्ञानरूपी एक वृक्ष है सो उसका फूल शान्ति है और स्थिति फल है जिस पुरुष को यह ज्ञान प्राप्त हुआ है शान्तिमान् होकर निर्लेप रहता है ।

१०) वसिष्ठ :  जिसको शम की प्राप्ति हुई है उसको उद्वेग नहीं होता और अन्य लोगों से उद्वेग नहीं पाता 

११) वसिष्ठ : जिसको शम की प्राप्ति हुई है सो सब क्रिया में आनन्दरूप है उसको कोई दुःख नहीं स्पर्श करता 

१२) वसिष्ठ :  तपस्वी, पण्डित, याज्ञिक और धनाढ़्य पूजा में मान करने योग्य हैं, परन्तु जिसको शम की प्राप्ति हुई है सो सबसे उत्तम और सबके पूजने योग्य है 

१३) वसिष्ठ :  जिस पुरुष को शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध क्रिया के विषयों के इष्ट अनिष्ट में राग द्वेष नहीं होता उसको शान्तात्मा कहते हैं 

१४) वसिष्ठ : जिसको पुरुषार्थ करना है उसको शान्ति की प्राप्ति करनी चाहिए

१५) वसिष्ठ :  विचारवान् पुरुष आपदा में नहीं फँसता 

१६) वसिष्ठ : जैसे दीपक से पदार्थ का ज्ञान होता है वैसे ही पुरुष विचार से सत्य असत्य को जानता है 

१७) वसिष्ठ : संसार रूपी समुद्र में आपदा की तरंगे उठती हैं । विचारवान् पुरुष उनके भाव अभाव में कष्ट वान् नहीं होता

१८) वसिष्ठ : अविचार से संसार दुःख देता है और सत्‌शास्त्र द्वारा युक्तिकर विचार करने से संसार का भय नष्ट हो जाता है

१९) वसिष्ठ : अविचार उसका नाम है जिसमें शुभ और शास्त्रानुसार क्रिया न हो 

२०) वसिष्ठ : जैसे तरंग के होने और लीन होने में समुद्र समान रहता है वैसे ही विवेकी पुरुष को इष्ट अनिष्ट में समता रहती है और संसारभ्रम मिट जाता है

२१) वसिष्ठ : जैसे प्रकाश से पदार्थ का ज्ञान होता है वैसे ही गुरु और शास्त्र के वचनों से तत्त्वज्ञान होता है 

२२) वसिष्ठ : जो पुरुष विचार से रहित होकर भोग में दौड़ता है वह श्वान है 

२३) वसिष्ठ : ऐसा विचार करे कि "मैं कौन हूँ ?" "यह जगत् क्या है ?’ "इसकी उत्पत्ति कैसे हुई" और "लीन कैसे होता है ?" इस प्रकार सन्तों और शास्त्रों के अनुसार विचार करके सत्य को सत्य और असत्य को असत्य जान जिसको असत्य जाने उसका त्याग करे और सत्य में स्थित हो । इसी का नाम विचार है 

Ganesh K Avasthi

Ganesh K Avasthi
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