ग्रंथपरिचय योगवासिष्ठ महारामायणम् मुमुक्षु प्रकरण सर्ग ६-७ सारांश दिवस ६
१) वसिष्ठ : इसका जो पूर्व का किया पुरुषार्थ है उसी का नाम दैव कोई है और दैव कोई नहीं
२) वसिष्ठ : जब यह सत्संग और सत्शास्त्र का विचार पुरुषार्थ से करे तब पूर्व के संस्कार को जीत लेता है
३) वसिष्ठ : जो कोई दैव कल्पते हैं सो मूर्ख हैं । जो पूर्व जन्म में सुकृत कर आया है वही सुकृत सुख होके दिखाई देता है और जिसका पूर्व का सुकृत बली होता है उसी की जय होती है ।
४) वसिष्ठ : जो पूर्व का दुष्कृत होता है और शुभ का पुरुषार्थ करता है और सत्संग और सत्शास्त्र को भी विचारता, सुनता और करता है तो पूर्व के संस्कार को जीत लेता है
५) वसिष्ठ : दृढ़ पुरुषार्थ करे तो पूर्व के संस्कार को जीत लेता है
६) वसिष्ठ : एकत्रभाव से प्रयत्न करने का नाम पुरुषार्थ है जो एकत्रभाव से यत्न करेगा उसको अवश्यमेव प्राप्त होगा और जो पुरुष और दैव को जानके अपना पुरुषार्थ त्याग बैठेगा तो दुःख पाकर शान्तिमान् कभी न होगा
७) वसिष्ठ : सन्तजनों और सत्शास्त्रों के वचनों और युक्तिसहित यत्न और अभ्यास करके आत्मपद को प्राप्त होने का नाम पुरुषार्थ है
८) वसिष्ठ : जैसे बड़े मेघ को पवन नाश करता है और जैसे वर्ष दिन के पके खेत को बरफ नाश कर देती है वैसे ही पुरुष का पूर्वसंस्कार प्रयत्न से नष्ट होता है
९) वसिष्ठ : श्रेष्ठ पुरुष वही है जिसने सत्संग और सत्शास्त्र द्वारा बुद्धि को तीक्ष्ण करके संसार समुद्र से तरने का पुरुषार्थ किया है
१०) वसिष्ठ : जो देखने में दीन होता है वह भी सत्संगी और सत्शास्त्र के अनुसार पुरुषार्थ करता है तो उत्तम पदवी को प्राप्त होता दीखता है
११) वसिष्ठ : जिस पुरुष ने पुरुष प्रयत्न किया है उसको सब सम्पदा आ प्राप्त होती है और परमानन्द से पूर्ण रहता है
१२) वसिष्ठ : जिस पुरुष ने अपने पुरुषार्थ का त्याग किया है और किसी और दैव को मानके कहता है कि वह मेरा कल्याण करेगा सो जन्ममरण को प्राप्त होकर शान्ति मान् कभी न होगा
१३) वसिष्ठ : अपने पुरुषार्थ द्वारा जन्म मरण के बन्धन से मुक्त होना, कोई दैव मुक्ति नहीं करेगा
१४) वसिष्ठ : जिस पुरुष ने अपने पुरुषार्थ का त्याग किया है और किसी और दैव को मानकर उसके आश्रित हुआ है उसके धर्म, अर्थ और काम सभी नष्ट हो जाते हैं और नीच से नीच गति को प्राप्त होता है
१५) वसिष्ठ : यह दैव शब्द मूर्खों का प्रचार किया हुआ है कि जब किसी कष्ट से दुःख पाते हैं तो कहते हैं कि दैव का किया है । पर कोई दैव नहीं है
१६) वसिष्ठ : मनुष्य को सत्शास्त्रों और सन्तसंग से शुभ गुणों को पुष्ट करके दया, धैर्य, सन्तोष और वैराग्य का अभ्यास करना चाहिये
१७) वसिष्ठ : जैसे बड़े ताल से मेघ पुष्ट होता है और फिर वर्षा करके ताल को पुष्ट करता है वैसे ही शुभ गुणों से बुद्धि पुष्ट होती है और शुद्ध बुद्धि से शुभ गुण पुष्ट होते हैं
१८) वसिष्ठ : जिस वस्तु की जीव वाच्छा करता है और उसके निमित्त दृढ़ पुरुषार्थ करता है तो अवश्य वह उसको पाता है
१९) वसिष्ठ : अपने पुरुषार्थ का आश्रय करो नहीं तो सर्प कीटादिक नीच योनि को प्राप्त होगे
२०) वसिष्ठ : अपने उद्यम किये बिना किसी पदार्थ की प्राप्ति नहीं होती तो परमार्थ की प्राप्ति कैसे हो
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