ग्रंथपरिचय योगवासिष्ठ महारामायणम् वैराग्य प्रकरण सर्ग १४-२५ सारांश दिवस ३

ग्रंथपरिचय योगवासिष्ठ महारामायणम् वैराग्य प्रकरण सर्ग १४-२५ सारांश दिवस ३

 

योगवसीष्ठ हिंदी

ग्रंथपरिचय योगवासिष्ठ महारामायणम् वैराग्य प्रकरण सर्ग १४-२५ सारांश दिवस ३ 

१) श्रीराम : जैसे सूर्य के उदय होने से सूर्य मुखी कमल खिल आता है और पँखुरियों को पसारता है वैसे ही युवावस्थारूपी सूर्य उदय होकर चित्तरूपी कमल और इच्छारूपी पँखुरी को पसारता है । फिर जैसे किसी को अग्नि के कुंड में डाल दिया हो और वह दुःख पावे वैसे ही कामके वश हुआ दुःख पाता है.

२) श्रीराम : जो कुछ विकार हैं सो सब युवावस्था में प्राप्त होते हैं । जैसे धनवान् को देखके सब निर्धन धन की आशा करते हैं वैसे ही युवावस्था देखकर सब दोष इकट्ठे होते हैं जो भोग को सुखरूप जानकर भोग की इच्छा करता है वह परम दुःख का कारण है.

३) श्रीराम : यह काम, क्रोध, मोह और अहंकार आदि सब चोर युवारूपी रात्रि को देखकर लूटने लगते हैं और आत्मज्ञान रूपी धन को ले जाते हैं । इससे जीव दीन होता है.

४) श्रीराम : शान्ति चित्तको स्थिर करने के लिये है पर युवावस्था में चित्त विषय की ओर धावता है जैसे बाण लक्ष्य की ओर जाता है । तब उसको विषय का संयोग होता है और विषय की तृष्णा निवृत्त नहीं होती और तृष्णा के मारे जन्म से जन्मान्तर में दुःख पाता है.

५) श्रीराम : जैसे प्रलयकाल में सब दुःख आकर स्थिर होते हैं वैसे ही काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार , चपलता इत्यादिक सब दोष युवावस्था में आ स्थिर होते हैं जो सब बिजली की चमक से हैं, होके मिट जाते हैं । जैसे समुद्र तरंग होकर मिट जाते हैं वैसे ही यह क्षणभंगुर है और वैसे ही युवावसथा होके मिट जाती है.

६)श्रीराम :  युवावस्था जीव की परम शत्रु है । जो पुरुष इस शत्रु से बचे हैं वही धन्य हैं । इसके शस्त्र काम और क्रोध हैं जो इनसे छूटा वह वज्र के प्रहार से भी न छेदा जायेगा और जो इनसे बँधा हुआ है वह पशु है.

७) श्रीराम : जब तक इन्द्रियों और विषयों का संयोग है तब तक अविचार से भला लगता है और जब वियोग होता है तब दुःख होता है.

८) श्रीराम : जैसे अन्धकार में पदार्थ का ज्ञान नहीं होता वैसे ही युवावस्था में शुभाशुभ का विचार नहीं होता । जिसको विचार नहीं रहा उसको शान्ति कहाँ से हो; वह सदा व्याधि और ताप से जलता रहता है । जैसे जल के बिना मच्छ को शान्ति नहीं होती वैसे ही विचार के बिना पुरुष सदा जलता रहता है.

९)श्रीराम : जैसे आकाश में वन होना आश्चर्य है वैसे ही युवावस्था में वैराग्य,विचार, शान्ति और संतोष होना भी बड़ी आश्चर्य है.

१०) श्रीराम : जो सुख स्मरणीय दीखता है वह आपात-रमणीय हैं. 

११) श्रीराम : जैसे पतंग अपने नाश के निमित्त दीपक की इच्छा करता है वैसे ही कामी पुरुष अपने नाश के निमित्त स्त्री की इच्छा करता है.

१२) श्रीराम : जरावस्था ( वृद्धावस्था ) दुःख का घर है जब जरावस्था आती है तब सब दुःख इकट्ठे होते हैं उनसे पुरुष महादीन हो जाते हैं

१३) श्रीराम : जितने कुछ रोग है वह सब वृद्धावस्था में आ प्राप्त होते हैं और शरीर कृश हो जाता है । उस समय स्त्री, पुत्रादिक भी सब वृद्ध का त्याग कर देते हैं । जैसे पक्के फल को वृक्ष त्याग देता है और जैसे वावले को देख के सब हँसके बोलते हैं कि इसकी बुद्धि जाती रही वैसे ही इसको भी देखके हँसते हैं.

१४) श्रीराम : युवावस्था में स्त्री पुत्रादिक उसकी टहल करते थे पर वही सब उसको वृद्धावस्था में जैसे वृद्ध बैल को बैलवाला त्याग देता है वैसे ही त्याग देते हैं, देखके हँसते हैं और अपमान करते हैं.

१५) श्रीराम : जैसे दर्पण में प्रतिबिम्ब देखकर बालक पकड़ने की इच्छा करता है वैसे ही अज्ञानी संसार को सत्य जानकर जगत् के पदार्थ की वाञ्छा करता है कि यह मुझे प्राप्त हो और यह न हो । यह सब सुख नाशात्मक हैं.

१६) श्रीराम : यह काल बड़ा बलिष्ठ है; जो कुछदेखने में आता है सो सब इसने ग्रास कर लिया है.

१७) श्रीराम : जितने भोग हैं वे रोग हैं, जिसको सम्पदा जानते हैं वह आपदा है, जिसको सत्य कहते हैं वह असत्यरूप है, जिन स्त्री, पुत्रादिकों को मित्र जानते हैं वह सब बन्धन के कर्त्ता हैं और इन्द्रियाँ महाशत्रुरूप हैं । वह सब मृगतृष्णा के जलवत् हैं, यह देह विकारूप है, मन महाचञ्चल और सदा अशान्तरूप है और अहंकार महानीच है, इसने ही दीनता को प्राप्त किया है । इससे जितने पदार्थ इसको सुखदायकभासते हैं वह सब दुःख के देने वाले हैं इससे कदाचित शान्ति नहीं होती.

१८) श्रीराम : मैं इतना जानता हूँ कि संसार में जीव को इतना दुःखी अहंकार ने किया है.

१९) श्रीराम : जब तृष्णा आती है तब आनन्द और धैर्य का नष्ट कर देती है । जैसे वायु मेघ का नाश कर डालता है वैसे ही तृष्णा ज्ञान का नाश कर डालती है.

२०) श्रीराम : जैसे जाल में पक्षी बँध जाता है और आकाशमार्ग को देख भी नहीं सकता वैसे ही काम क्रोधादिक से ढँका हुआ जीव विचार मार्ग को नहीं देख सकता.

२१) श्रीराम : जैसे ताल में हाथी के पाँव से कमल नष्ट हो जाता है वैसे ही काम क्रोध और  दुराचार से शुभ गुण नष्ट हो जाते हैं.

२२) श्रीराम : जैसे सूर्य के उदय हुये बिना अन्धकार का नाश नहीं होता वैसे  ही आत्मज्ञान के बिना संसार के दुःख का नाश नहीं होता.

२३) श्रीराम : परम दुःख का कारण विषय भोग ही है.

२४) श्रीराम : अज्ञानी का चित्त भोग का त्याग कदाचित नहीं करता.

२५) श्रीराम : यह बुद्धि जैसे ताल में हाथी प्रवेश करता है और पानी मलीन हो जाता  है वैसे ही मोह से मलीन हो जाती है.


Ganesh K Avasthi
Blog Admin





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