ग्रंथपरिचय योगवासिष्ठ महारामायणम् वैराग्य प्रकरण सर्ग १ - ७ सारांश दिवस १

ग्रंथपरिचय योगवासिष्ठ महारामायणम् वैराग्य प्रकरण सर्ग १ - ७ सारांश दिवस १

योगवासिष्ठ - महारामायणम्

योगवासिष्ठ महारामायणम् वैराग्य प्रकरण सर्ग  १ - ७  सारांश दिवस १


श्रीयोगवशिष्ठ प्रथम वैराग्य प्रकरण प्रारम्भ ! सर्ग १ – ७ 

१) मोक्ष का कारण कर्म है या ज्ञान? अथवा दोनों?

अगस्त्य : केवल कर्म मोक्ष का कारण नहीं और केवल ज्ञान से भी मोक्ष प्राप्त नहीं होता; मोक्ष की प्राप्ति दोनों से ही होती है । कर्म करने से अन्तःकरण शुद्ध होता है, मोक्ष नहीं होता और अतःकरण की शुद्धि के बिना केवल ज्ञान से भी मुक्ति नहीं होती; इससे दोनों से मोक्ष की सिद्धि होती है । कर्म करने से अतःकरण शुद्ध होता है, फिर ज्ञान उपजता है और तब मोक्ष होता है । जैसे दोनों पंखों से पक्षी आकाश मार्ग में सुख से उड़ता है वैसे ही कर्म और ज्ञान दोनों से मोक्ष की प्राप्ति होती है !

२) अगस्त्य : स्वर्ग दोष : जो आपसे ऊँचे बैठे दृष्ट आते हैं और उत्तम सुख भोगते हैं उनको देखकर ताप की उत्पत्ति होती है क्योंकि उनकी उत्कृष्टता सही नहीं जाती, जो कोई अपने समान सुख भोगते हैं उनको देखकर क्रोध उपजता है कि ये मेरे समान क्यों बैठे है और जो आपसे नीचे बैठे हैं उनको देखकर अभिमान उपजता है कि मैं इनसे श्रेष्ठ हूँ, 

३) वाल्मीकिजी : यह जगत् जो भासता है सो वास्तविक कुछ नहीं उत्पन्न हुआ; अविचार करके भासता है और विचार करने से निवृत्त हो जाता है । जैसे आकाश में नीलता भासती है सो भ्रम से वैसे ही है यदि विचार करके देखिए तो नीलता की प्रतीति दूर हो जाती है वैसे ही अविचार से जगत भासता है और विचार से लीन हो जाता है ।

४) वाल्मीकिजी : जब तक सृष्टि का अत्यन्त अभाव नहीं होता तब तक परमपद की प्राप्ति नहीं होती । जब दृश्य का अत्यन्त अभाव हो जावे तब शुद्ध चिदाकाश आत्मसत्ता भासेगी ।

५) वाल्मीकिजी : संसार भ्रममात्र सिद्ध है । इसको भ्रममात्र जानकर विस्मरण करना यही मुक्ति है । जीव के बन्धन का कारण वासना है और वासना से ही भटकता फिरता है । जब वासना का क्षय हो जाय तब परमपद की प्राप्ति हो! वासना का एक पुतला है उसका नाम मन है । जैसे जल सरदी की दृढ़ जड़ता पाकर बरफ हो जाता है और फिर सूर्य के ताप से पिघल कर जल होता है तो केवल शुद्ध ही रहता है वैसे ही आत्मा रूपी जल है उसमें संसार की सत्यतारूपी जड़ता शीतलता है और उससे मन रूपी बरफ का पुतला हुआ है । जब ज्ञानरूपी सूर्य उदय होगा तब संसार की सत्यतारूपी जड़ता और शीतलता निवृत्त हो जावेगी । जब संसार की सत्यता और वासना निवृत्त हुई तब मन नष्ट हो जावेगा और जब मन नष्ट हुआ तो परम कल्याण हुआ । इससे इसके बन्धन का कारण वासना ही है और वासना के क्षय होने से मुक्ति है । वह वासना दो प्रकार की है- एक शुद्ध और दूसरी अशुद्ध । अशुद्धवासना से अपने वास्तविक स्वरूप के अज्ञान से अनात्मा को देहादिक हैं उनमें अहंकार करता है और जब अनात्म में आत्म अभिमान हुआ, तब नाना प्रकार की वासना उपजती हैं जिससे घटीयंत्र की नाईं भ्रमता रहता है

६) वाल्मीकिजी : यह जो पञ्चभूत का शरीर तुम देखते हो सो सब वासनारूप है और वासना से ही खड़ा है । जैसे माला के दाने धागे के आश्रय से गुँथे होते हैं और जब धागा टूट जाता है तब न्यारे न्यारे हो जाते हैं और नहीं ठहरते वैसे ही वासना के क्षय होने पर पञ्चभूत का शरीर नहीं रहता । इससे सब अनर्थों का कारण वासना ही है । शुद्ध वासना में जगत् का अत्यन्त अभाव निश्चय होता है ।

७) वाल्मीकिजी : अज्ञानी की वासना जन्म का कारण होती है और ज्ञानी की वासना जन्म का कारण नहीं होती । जैसे कच्चा बीज उगता है और जो दग्ध हुआ है सो फिर नहीं उगता वैसे ही अज्ञानी की वासना रससहित है इससे जन्म का कारण है और ज्ञानी की वासना रसरहित है वह जन्म का कारण नहीं । ज्ञानी की चेष्टा स्वाभाविक होती है । वह किसी गुण से मिलकर अपने में चेष्टा नहीं देखता । वह खाता, पीता, लेता, देता, बोलता चलता एवम् और अन्य व्यवहार करता है पर अन्तःकरण में सदा अद्वैत निश्चय को धरता है कदाचित् द्वैतभावना उसको नहीं फुरती । वह अपने स्वभाव में स्थित है इससे उसकी चेष्टा जन्म का कारण नहीं होती । जैसे कुम्हार के चक्र को जब तक घुमावे तब तक फिरता है और जब घुमाना छोड़ दे तब स्थीयमान गति से उतरते उतरते स्थिर रह जाता है वैसे ही जब तक अहंकार सहित वासना होती है तब तक जन्म पाता है और जब अहंकार से रहित हुआ तब फिर जन्म नहीं पाता ।

८) वाल्मीकिजी : इस अज्ञानरूपी वासना के नाश करने को एक ब्रह्मविद्या ही श्रेष्ठ उपाय है जो मोक्ष उपायक शास्त्र है ।

९) श्रीराम : राज्य करने से क्या है, भोग से क्या है और जगत क्या है - सब भ्रममात्र है - इसकी वासना मूर्ख रखते हैं; यह स्थावर, जंगम जगत् सब मिथ्या है ! जितने कुछ पदार्थ हैं वह सब मन से उत्पन्न होते हैं सो मन ही भ्रममात्र है अनहोता मन दुःखदायी हुआ है । 

१०) श्रीराम : मन जो पदार्थों को सत्य जानकर दौड़ता है और सुखदायक जानता है सो मृगतृष्णा के जलवत् है । जैसे मृगतृष्णा के जल को देखकर मृग दौड़ते हैं और दौड़ते-दौड़ते थक कर गिर पड़ते हैं तो भी उनको जल प्राप्त नहीं होता वैसे ही मूर्ख जीव पदार्थों को सुखदायी जानकर भोगने का यत्न करते हैं और शान्ति नहीं पाते । 

११) श्रीराम : इन्द्रियों के भोग सर्पवत् है जिनका मारा हुआ जन्म मरण और जन्म से जन्मान्तर पाता है । भोग और जगत् सब भ्रममात्र हैं उनमें जो आस्था करते हैं वह महामूर्ख हैं मैं विचार करके ऐसा जानता हूँ कि सब आगमापायी है अर्थात् आते भी हैं और जाते भी हैं । इससे जिस पदार्थ का नाश न हो वही पदार्थ पाने योग्य है इसी कारण मैंने भोगों को त्याग दिया है ! 

१२) श्रीराम : जितने सम्पदारूप पदार्थ भासते हैं वह सब आपदा हैं; इनमें रञ्चक भी सुख नहीं । जब इनका वियोग होता है तब कण्टक की नाई मन में चुभते हैं । जब इन्द्रियों को भोग प्राप्त होते हैं तब जीव राग द्वेष से जलता है और जब नहीं प्राप्त होते तब तृष्णा से जलता है--इससे भोग दुःखरूप ही है । जैसे पत्थर की शिला में छिद्र नहीं होता वैसे ही भोगरूपी दुःख की शिला में सुखरूप छिद्र नहीं होता ।

१३) श्रीराम : जिस पुरुष को सदा भोग की इच्छा रहती है वह मूर्ख और जड़ है ।

१४) श्रीराम : जब लक्ष्मी प्राप्त हुई तब सब सद्गुण अर्थात् शीलता, सन्तोष, धर्म, उदारता, कोमलता, वैराग्य विचार दयादिक का नाश कर देती है । जब ऐसे गुणों का नाश हुआ तब सुख कहाँ से हो, तब तो परम आपदा ही प्राप्त होती है ।

१५) श्रीराम : ईस जीव में गुण तबतक हैं जब तक लक्ष्मी नहीं प्राप्त हुई । जब लक्ष्मी की प्राप्ति हुई तब सब गुण नष्ट हो जाते हैं । जैसे बसन्त ऋतु की मञ्जरी तब तक हरी रहती है जब तक ज्येष्ठ आषाढ़ नहीं आता और जब ज्येष्ठ आषाढ़ आया तब मञ्जरी जल जाती है वैसे ही जब लक्ष्मी की प्राप्ति हुई तब शुभ गुण जल जाते हैं । मधुर वचन तभी तक बोलता है जब तक लक्ष्मी की प्राप्ति नहीं है और जब लक्ष्मी की प्राप्ति हुई तब कोमलता का अभाव होकर कठोर हो जाता है

१६) श्रीराम : पुरुष में शुभ गुण तब तक हैं जब तक तृष्णा का स्पर्श नहीं और जब तृष्णाहुई तब गुणों का अभाव हो जाता है । जैसे दूध में मधुरता तब तक है जब तक उसे सर्प ने स्पर्श नहीं किया और सर्प ने स्पर्श किया तब वही दूध विषरूप हो जाता है ।

दिनांक २८ -७ - २०२३  


Ganesh K Avasthi
Blog Admin





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