प्रकृति ही सिर्फ एक ऐसा न्यायालय है जहाँ न्याय की परिभाषा को परिपूर्ण अर्थ मिलता है ! वहा पक्षपात की शून्य गुंजाईश है ! न कोई गवाह ख़रीदा नहीं जा सकता, न कोई सबूत मिटाया जा सकता ! जात - नस्ल - हैसियत - रूतबा - शोहरत के सारे गुरूरो को रोंदते हुवे सिद्ध करती है वह अपनी मालकियत यत्र -तत्र - सर्वत्र !
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