आज पिता के खयालो ने
जंझोर डाला !
अंतरंग से शब्द उठे !
कलम भी उठी !
लेकिन कागज पे शब्द उतर ही नहीं पाए !
कलम मौन रह गयी !
वैसे ही जैसे पिताजी भी मौन हो जाते है
खुद की जिंदगी दांव पे लगाकर
सबकी जींदगियो को संवारते संवारते !
२६-४-२०२२
८.३० दिन
#गणेश_अवस्थी #नाशिक #Ganesh_Avasthi #Nashik
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