क्या कलमसे निकली हुवी पंक्तिया मेरी है ?
कलम से निकली हुवी पंक्तियोपे मेरी मालकियत कैसे
जाहीर कर दू ?
ऐसा कहने को मेरा जमीर राजी नही !
हा, कलम मैंने जरुर पकड़ी है, कागजपे भी जरुर मेंरे
हाथ ही उतार रहे है !
लेकिन ये शब्द आ रहे है किसी अज्ञात गहराईसे ! वहां
छुपा है वो लेखक,
जिससे में पूर्णता हु अनभीज्ञ !
में जाहीर कर दूंगा मेरी मालकियत उन पंक्तियोंपे उस
अज्ञात लेखककी मुलाकात के बाद !
शायद उस अज्ञात लेखक की मुलाकात के बाद
मालकियत जाहीर करने की जरूरत ही न रहे !
क्योंकि मैंने कभी देखा नहीं किसी फुल को सुगंध पे मालकियत जताते हुवे !
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